''प्रलेक व्यक्तित्व श्रृंखला'' की यह पुस्तक हरिवंश जी के बहुआयामी व्यक्तित्व कृतित्व नेतृत्व पर है। लंबे समय तक एक जमीनी संवाददाता-पत्रकार कुशल संपादक लेखक और अब राजनेता के तौर पर उनकी पहचान स्थापित है। पर इससे परे और भी कई पहलू हैं उनके व्यक्तित्व से जुड़े हुए। खूब पढ़ते हैं। देश-दुनिया के हर बदलाव पर पैनी नजर रखते हैं। पत्रकारिता से लेकर राजनीति में भी शीर्ष तक पहुँच जाने के बावजूद सहजता सरलता पर कोई फर्क नहीं आया। हरिवंश जी की लिखी हुई या संपादित की हुई कई किताबें पहले आ चुकी हैं। अलग-अलग विषय पर अलग-अलग प्रकाशनों से। पर यह पुस्तक उनसे अलग है। हरिवंश जी देश- दुनिया के विषय पर लिखते रहे उनका लिखा छपता रहा पर खुद के बारे में लिखने बताने से बचते रहे। उन पर केंद्रित कोई किताब अब तक नहीं थीं। जबकि वर्तमान में जारी राजनीतिक यात्रा वाले पक्ष को छोड़ भी दें तो पत्रकारिता में ही उन्होंने इतना काम किया है उसे ही केंद्र में रखकर उनका आकलन-मूल्यांकन हो तमाम पक्ष और पहलुओं को समेटा जाए तो अनेक किताब बन जाए। ''धर्मयुग'' ''रविवार'' जैसी स्थापित और प्रतिष्ठित पत्रिका में पत्रकारिता करने के बाद हरिवंश जी ''प्रभात खबर'' के प्रधान संपादक रहे। करीब तीन दशक तक झारखंड की राजधानी रांची से प्रकाशित अखबार का नेतृत्व करते रहे। इस दौरान उन्होंने एक छोटे से शहर से निकलनेवाले बंदप्राय अखबार को पूर्वी भारत का प्रमुख अखबार बना दिया। हिन्दी पत्रकारिता का मानक भी दिया। किसी बड़ी पूँजी या निवेश के दम पर नहीं बल्कि अपनी समझ और संपादकीय नेतृत्व के दम पर। इस दृष्टि से देखें तो वह अपने आप में एक संस्थान बन गये। पत्रकारिता में उनका प्रयोग और काम शोध का विषय बन गया। ..........
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