हर्षिता में लिखी हुई सभी कविताएं एक युवा के मनोविचार को प्रकट करती है और बताती है कि एक युवा के मन मे कितने प्रकार के द्वंद चलते रहते है और वह कैसे उनका सामना करता है। इस किताब में कुछ कविताएं श्रृंगार रस में सृजित है कुछ वियोग रस और कुछ वीर या यूं कहें कि रौद्र रस में लिखी गयी है।इस किताब में जो भी कविताएं श्रृंगार रस में लिखी गयी है उनका पूरा संबंध कवि के जीवन से है जिसमे कुछ घटनाएं लेखक के साथ है तो कुछ कवि की कल्पना पर आधारित है। वियोग रस में सृजित कविताएं भी लेखक के जीवन से संबंधित है परंतु पाठक भी इन सभी कविताओं को अपने जीवन से भी जोड़ सकता है।रौद्र रस या वीर रस में लिखी कविताएं समाज में लिप्त बुराईया सामाजिक द्वेष राजनिती व मुख्यता स्त्री पर हो रहे अत्याचार से प्रेरित होकर लिखी गयी है।हर्षिता में पाठकों को जो भी कवितायें पढ़ने को मिलेंगी वे उन सभी कविताओं को अपने जीवन मे घटित घटनाओं या प्रत्याशित घटनाओ से जोड़कर पढ़ सकते है। और साथ ही साथ अगर पाठक युवा है तो उसके विचारों के बिल्कुल अनुकूल या कहिये चरित्र के समीचीन है यह पुस्तक व इसमे संलग्न कविताएं।यह पुस्तक समाज मे लिप्त बुराइयों पर एक व्यंग्य है और यह एक आईना भी है जिसकी आवश्यकता आज हमारे समाज को है फिर चाहे वो गरीबी हो भुखमरी हो या फिर स्त्री पर हो रहे अत्याचार ही क्यों न होयह पुस्तक इन सभी प्रकरणों को उजागर भी करती है और इनसे निपटने के तरीके भी बताती है।हर्षिता में जो भी कवितायें प्रेम से संबंधित है उन सभी कविताओं को एक युवा पाठक अपने जीवन से जोड़कर भी पढ़ सकता है और इस किताब में लिखित प्रेम की कवितायें यह भी बताती है कि प्रेम शास्वत है।और अगर आप हर्षिता के पाठक है तो आपको इसे सुक्षतं रसास्वादन के साथ ही इस किताब का पठन-पाठन करना होगा तभी कवि की मेहनत चरितार्थ हो पाएगी।-: ज्ञानेंद्र मणि त्रिपाठी (हर्ष)
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