Haveli Ka Adbhut Rahasya


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About The Book

“जैकाल ये क्या खेल खेल रहा है तू कहीं मेरा भेजा घूम न जाये और तेरी जिन्दगी पर विराम यहीं लगाना पड़े। रास्ता बता कमीने।” भीषण गर्जना थी उसकी ध्वनि में। सम्पूर्ण वातावरण मानों काँप रहा था। सहसा जैकाल ने चकमा देते हुए अलंकार को जोर का धक्का दिया जिससे अलंकार के हाथों से रिवाल्वर छूटकर दूर जा गिरा। अलंकार हड़बड़ाकर पीछे की ओर खिसक गया क्योंकि सामने से भयानक व भयावह मानव कंकाल सीधा उसके सिर की ओर खिसक गया। परन्तु अलंकार ने तीव्रता पूर्वक अपना सिर मानव कंकाल के आने की दिशा से अलग कर लिया जिससे वह मानव कंकाल अलंकार को नुकसान नहीं पहुँचा सका। हवेली के अद्भुत रहस्य में डूबता गया इंस्पेक्टर अलंकार और अंततः खोज निकाला एक भयानक और आपराधिक गिरोह को।
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