चर्चित कथाकार और फ़िल्मकार सुरेन्द्र मनन द्वारा लिखित ' हिल्लोल' की रचना-प्रक्रिया एक बीहड़ यात्रा जैसी है l इस यात्रा का मकसद कुछ ऐसे ऐतिहासिक पात्रों की तलाश करना था जो दशकों पहले लापता हो चुके थे l जिनका न तो कहीं कोई सुराग था न ही कोई नामलेवा l न तो इतिहास की किताबों में उनका कहीं कोई ज़िक्र था न किसी की स्मृति में वे बचे हुए थे l उनके बारे में यह भी निश्चित नहीं था कि इतना लंबा समय बीत जाने के बाद वे ज़िंदा भी हैं या नहीं l वे गुमनाम गुमशुदा पात्र थे रॉयल इंडियन नेवी के हिंदुस्तानी सेलर्स जिन्होंने फरवरी 1946 में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ बगावत का ऐलान करके स्वाधीनता आंदोलन के इतिहास में एक ऐसे विस्फोटक अध्याय की रचना की थी जिसकी गूँज ने हिंदुस्तान में ब्रिटिश राज की जड़ों को हिला कर रख दिया था l बीस-बाईस साल की उम्र के वे युवा सेलर्स हिंदुस्तान में ब्रिटिश राज के अंतिम दिनों में कोर्ट मार्शल और जेलों की यन्त्रणा तो झेलते ही रहे विडंबना यह कि आज़ाद हिंदुस्तान में भी दशकों-दशकों तक वे अपनी पहचान की स्वीकृति पाने के लिए लावारिसों की तरह दर-दर भटकते रहे थे l राजनीतिक स्वार्थों और दबावों के चलते बड़ी सहजता से उन्हें विस्मृत कर दिया गया था और उनके नामों तक को भारतीय नौसेना के सेवा रिकॉर्ड से हटा दिया गया था l
Piracy-free
Assured Quality
Secure Transactions
Delivery Options
Please enter pincode to check delivery time.
*COD & Shipping Charges may apply on certain items.