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About The Book
Description
Author
हिमालय ! जिसके हिमधवल शिखरों पर सूरज सोना बिखेर कर उसमें अपनी ऊष्मा भर देता है और चाँद अपनी चाँदी से उसे सिनिग्ध बना देता है . हिमालय की भव्यता मन को सम्मोहित करती है .इसके ऊँचे – ऊँचे शिखर सघन गिरि कानन मानव की प्रेरणा और उसके आकर्षण के केंद्र रहे है . तभी तो तपस्वी से लेकर मनस्वी तक इसकी ओर खिंचे चले आते हैं. पूर्व से पश्चिम तक फैला हिमालय बनावट में धनुष के चाप की तरह नजर आता है . हिमालय जागती आँखों का एक सुंदर स्वप्न है तभी तो इसे देखने चाह लिए लोग इसकी ओर खिंचे चले जाते हैं. किसी को इसकी ऊँची धवल चोटियाँ लुभाती हैं तो किसी को इसका रहस्यमय सौंदर्य तभी तो पर्वतारोही भूगोल शास्त्री और कवि बार- बार इसके समीप जाते रहे हैं. रामायण और महाभारत काल से लेकर आधुनिक युग के अनेक कवियों ने इसके सौन्दर्य को अपने शब्दों में बाँधने की कोशिश की है .कालिदास के कुमार संभव और मेघदूतम के तो सृजन का आधार ही हिमालय है. प्रसाद की कामायनी की कथा भी हिमालय के इर्द गिर्द ही घूमती है . अज्ञेय इसे असाध्य वीणा के तारों में पिरो कर प्रियमवद को मुग्ध कर देते हैं और मैं ? मुझे तो लगता था जैसे हिमालय के हर कण में मेरे स्वप्न बिखरे हुए हैं - “हिमगिरि के शिखरों पर बिखरे कितने स्वप्न प्रसून