Hindi Aur Marathi Dalit Mahila Kavya Ek Tulnatmak Adhyayan
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भारतीय स्त्री बारहवीं शताब्दी की प्रख्यात कन्नड़ कवियत्री- अक्का महादेवी और सोलहवीं शताब्दी की हिंदी कवयित्री मीराबाई इन्ही के बाद भारत की प्रथम महिला शिक्षिका समाज सुधारिका एवं मराठी कवियत्री सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले महिला आन्दोलन की शुरूआत 18वीं शताब्दी से मानी जाती है | इन्ही की प्रेरणा से आज स्वर्ण हो या दलित सभी महिलाओंको शिक्षा प्राप्त करनेका अधिकार मिला हैं| आधुनिक भारत के पितामहा बाबा साहब डॉ भीमराव रामजी अम्बेकर. इन्ही की बदौलत से भारतीय नारी स्वतंत्र हैं | दलित साहित्य से तात्पर्य दलित जीवन और उसकी समस्याओं पर लेखन को केन्द्र में रखकर हुए साहित्यिक आंदोलन से है जिसका सूत्रपात दलित पैंथर से माना जा सकता है। दलितों को हिंदू समाज व्यवस्था में सबसे निचले पायदान पर होने के कारण न्याय शिक्षा समानता तथा स्वतंत्रता आदि मौलिक अधिकारों से भी वंचित रखा गया। उन्हें अपने ही धर्म में अछूत या अस्पृश्य माना गया। दलित साहित्य की शुरूआत मराठी से मानी जाती है जहां दलित पैंथर आंदोलन के दौरान बडी संख्या में दलित जातियों से आए रचनाकारों ने आम जनता तक अपनी भावनाओं पीडाओं दुखों-दर्दों को कविताओं निबन्धों जीवनियों कटाक्षों व्यंगों कथाओं आदि ऐसे अनेक समश्याओंको देखते हुए| दलित कवीत्रियोने अपने कविता के माध्यम से इसका खंडन किय हैं हिंदी और मराठी दलित महिला विशेष कवीयत्रियोंके कविताओं में समानता पर विशेष बल छूआछूत का आजीवन विरोध सामाजिक समानताघरेगु हिंसासाथी प्रथाविधवा स्त्री को अपमानित करना अंधविश्वास अशिक्षा.बांझपनबलात्कारबाल विवाह और दहेज़ प्रथा ऐसे विविध समस्यापर बल देते हुए स्वतंत्रता और न्याय तत्कालीन सामाजिक और राजनितिक स्तिथि की प्रामाणिक अभिव्यक्ति इस पुस्तक का मुख्य आधार हैं |
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