कॉलेज में ‘‘हिन्दी वाला’’ होना एक कलंक बराबर होता था। प्रभात जी ने अपनी बहुत ही मनोरंजक किताब में ‘‘हिन्दी टाइप’’ होने को इतनी मज़ेदार और इतनी गूढ़ दृष्टि से देखा है कि जैसे पूरा हिन्दू कॉलेज का मेरा समय सामने आकर खड़ा हो गया। बहुत ही खूबसूरत किताब है और बहुत-बहुत शुभकामनाएँ प्रभात भैया को।-वाणी त्रिपाठी संस्कृतिकर्मीप्रभात रंजन हिन्दी के उन विलक्षण रचनाकारों में से हैं जो विषय में पर्याप्त तैयारी के साथ प्रवेश करते हैं। अनुभव का व्योम इतना व्यापक कि जब वो रचते हैं तो हिन्दी समृ़द्ध होती है। समकालीन के साथ परंपरा में प्रवेश करने की लेखकी प्रविधि उनको हिन्दी के शीर्ष लेखकों में शामिल कर देती है।-अनंत विजय वरिष्ठ पत्रकार लेखक
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