संवेदनशीलता अपनत्वतामृदुलता मानवीयता प्रख रताअखिलतावैचारिकतासहिष्णुता से पूर्ण विरक्त होकर मनुष्य जब स्वयं के दायित्व और उत्तरदायित्वों की आपाधापी से झूझकर कुंठित विचारों की लड़खड़ाती पगडंडी पकड़कर चलने लगे तब इस पुस्तक के भीतर छिपे यथार्थ को एक बार अवश्य पढ़ना चाहिए। यह संग्रह गाँव के प्रति श्रद्धा प्रेम के प्रति अर्पण और माँ के प्रति समर्पण के साथ ही साथ मैत्री संबंधों की अतुलनीय छवि उकेरने में आपके लिए सहायक होगी। ईश्वरीय प्रार्थना से लबालब भरी स्नेह और अपनत्व की सभी सीमाओं को लांघकर मानवीय लीक पर चलती इस पुस्तक को जब मनुष्य स्वयं को भीतर ही भीतर से अकेला और हारा हुआ समझे तो एक बार अवश्य पढ़ना चाहिए और इस पुस्तक के शब्दों की जगमगाहट से स्वयं को अवश्य प्रकाशित करना चाहिए। इस पुस्तक के अट्ठारह वर्षीय लेखक नवनीत ने अपने जीवन के अभी तक के मूल अनुभवों को कविताओं के माध्यम से अपनी इस पहली में बेहद शब्द-संयम के साथ उकेरा हैं। उनका मानना है कि व्यक्ति में जब साहस का आभाव हो प्रेम का दुर्भाव हो तो कविताओं का सहारा अवश्य लेना चाहिए क्योंकि कविताएँ मन के द्वार खोलती है जिससे सरसराकर आती शीतल हवा के झोंके आभ्यंतरिक (भीतर ही भीतर) आनंद का संचार करते हैं और प्रगति पथ पर चलने लिए प्रेरित करती रही हैं। इस संग्रह के सभी कविताओं में देहात से लेकर प्राकृतिक सौन्दर्य की आभा में प्रेम-स्फुरण के साथ ही साथ एक माँ की ममता का स्पर्श है। जिसे पढ़कर आप महसूस करेंगे कि इस पुस्तक की सभी रचनाओं से आपका गहरा संबंध है एवं जिसे आप अभी तक मन में दबाए हुए है मुझे विश्वास हैइस संग्रह को पढने के उपरांत आपके भीतर के अनछुए एहसास जाग जाऐंगे।
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