हिन्दी साहित्य में दोहा लिखने की परम्परा बहुत प्राचीन है। तुलसी कबीर रहीम आदि आदिकालीन साधनों ने अपने दोहों से समाज चेतना का उल्लेखनीय कार्य किया। समय के साथ दोहों की रचना कम होने लगी किंतु इधर के कुछ वर्षों में पुन दोहों की ओर कवियों का रुझान बढ़ा है। इन रचनाकारों में राजकुमार सचान ‘होरी’ काव्य की सभी विधाओं के सार्थक रचनाकार हैं। इनमें छंदबद्ध और छंदमुक्त दोनों प्रकार की रचना सृजित करने की पर्याप्त क्षमता है। एक अन्य उच्च अधिकारी होने के नाते उन्हें जीवन में प्रशासनिक तंत्र के जो कड़वे-मीठे अनुभव हुए हैं उन्हें उन्होंने बड़ी कुशलता तथा बेबाकी के साथ अपनी व्यंग्य कविताओं में उतारा है। उनके बहुआयामी काव्य सृजन का एक महत्वपूर्ण अंग है ‘दोहा’। उनके दोहे बिहारी की परम्परा में नहीं रहीम और कबीर की परंपरा में आते हैं। वे जीवनानुभवों से सीधे जुड़े हैं। समाज की विसंगतियों को नजदीक से देखने और गहराई से एक साथ अनुभव करके ये अपनी रचनाओं में उसकी कुछ ऐसी प्रस्तुति करते हैं कि पाठक एक साथ आनंद और बेचैनी का अनुभव करता है। पोर पृथ्वी की हम कहां बड़ा होकर मम्मी मैं कविता संग्रह इसके सुंदर उदाहरण हैं। राजकुमार सचान ‘होरी’
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