मेरा यह नवीन काव्य संकलन हृद-स्पंदन आधुनिक समाज में मानव की सामाजिक एवं सांस्कृतिक सन्दर्भों में उसकी संकल्पना विश्वास और मानसिक विचारों को प्रतिबिम्वित और रेखांकित करने का प्रयास करती है | किसी भी देश का निर्माण उसके समज से और उस समाज का निर्माण उसके लोगों से और विवेकवान बुद्धिवान विचारवान व् संस्कारित लोगो का निर्माण धर्म संस्कृति शिक्षा और संस्कारों से होती है तो निश्चित ही हमारा एक परिवर्तन के दौर से जुजर रहा है जो आधुनिक संस्कृतियों और उनके प्रभावों से प्रभावित हो रहा है | आज का हमारा समाज बहुत सारी व्यहारिक और मानसिक समस्याओं का सामना कर रहा है | लोगों में जीवन के प्रति देखने का नजरिया और सोच दोनों ही बदल गए है | मेरी यह काव्यांजलि सामाजिक सरोकारों और विडंबनाओं को प्रस्तुत करने की एक ईमानदार कोशिश करती है | मैंने इसके द्वारा बदलते हुए सामाजिक मूल्यों और सन्दर्भों को बहुत ही समीप से देखने की कोशिस की और उन्हें अपनी कल्पनारूपी तूलिका से पुस्तक रुपी हृद- स्पंदन के कैनवास के पन्नों पर उतारने का एक सार्थक प्रयास इस काव्य संकलन में किया है | मैं इस आशा और विश्वास के साथ आप की प्रतिक्रियाओं का स्वागत और अभिन्नदन करूँगा की आपने मेरे इस प्रयास को अपने विवेचन से आशान्वित और पल्लवित किया है | इस उम्मीद के साथ मैं यह संकलन आप सभी प्रबुद्ध पाठकों को समर्पित करता हूँ डॉ. सन्तोष कुमार ज. मिश्रा
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