Hum Bhool Na Jaaye Unko

About The Book

लार्ड माउंटबेटन ने सता हस्तांतरण की योजना पर विभिन्न पक्षों के साथ मोटे तौर पर विचार- विमर्श बहुत जल्दबाजी में पूरा किया। एक-एक करके उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के दूसरे नेताओं से भी बात की लेकिन सबसे महत्वपूर्ण मुलाकात थी महात्मा गांधी के साथ। हालांकि खंडित स्वतंत्रता की सूचना से महात्मा गांधी के हृदय को गहरी चोट पहुंची थी.... 22 मार्च 1947 का वह दिन न तो सर्द था न गर्म । सर्दी जा चुकी थी लेकिन गर्मी अभी पूरी तरह से आई नहीं थी। हां भारत का सामाजिक और राजनीतिक वातावरण अवश्य गर्म था। ऐसी ही तनावपूर्ण स्थिति में भारत के नए वायसराय लार्ड लुई माउंटबेटन का वायुयान दोपहर बाद दिल्ली में उतर रहा था। एडविना माउंटबेटन और बेटी पामेला उनके साथ थीं। दूसरा विश्वयुद्ध समाप्त हो चुका था। भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के नेताओं को यह प्रतीत होने लगा था कि स्वाधीन भारत का उनका सपना पूरा होने ही वाला है लेकिन पाकिस्तान की मांग को लेकर मुस्लिम लीग और कांग्रेस के नेताओं के बीच अविश्वास की खाई बढ़ती जा रही थी। कैबिनेट मिशन फेल हो गया था। स्थितियां वायसराय लार्ड वेविल के नियंत्रण से बाहर जाती दिखाई दे रही थीं। भारतीय राष्ट्रीय अविलन के शिखर पुरुष मोहनदास करमचंद गांधी को वायसराय वेविल पसंद नहीं करते थे। 18 दिसंबर 1946 को पटली ने लाई लई माउंटबेटन को बुलाकर भारत का वायसराय बनने का प्रस्ताव रखा। अंग्रेजों की निगाह में भारत की स्थिति उस समय वैसी ही थी जैसे गोला-बारूद से भरे किसी जलज में आग लगी हो। ऐसी विषम परिस्थिति में भारत के अंतिम वायसराय के रूप में जाकर कोई भी अपने हाथ नहीं जलाना चाहता था।
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