नब्बे के दशक की आधुनिक कश्मीरी कविता का एक युगांतरकारी आयाम उसकी निर्वासन-चेतना है । इतने दशकों बाद आज भी इधर के निर्वासित कालखंड में कश्मीरी कविता के केंद्र में जलावतनी उसका मुख्य समकालीन वस्तु-सत्य बना हुआ है।अपनी भूमि से बिछोहजनसंहार की दारुण स्मृतियाँघृणा की राजनीतिकैंपों में पशुओं जैसी ज़िन्दगीअस्तित्व और अस्मिता के प्रश्नअनदेखी एक जीती- जागती सनातन संस्कृति के विलोपन की आशंका जैसी विचलनकारी चिन्ता इन निर्वासित कश्मीरी कवियों का वर्ण्य-विषय है।आधुनिक कश्मीरी कविता के इस पहलु को समझने के लिए हमें यह पता होना चाहिए कि यह निर्वासन-चेतना आर्थिक बाध्यताओं प्राकृतिक आपदाओंविकास के कारण हुआ विस्थापन न होकर आस्था विशेष के नाम पर हुए जेनोसाइड (जनसंहार) के चलते घटित हुई है।हालाँकि संवेदना के स्तर पर सभी तरह के विस्थापनों की पीड़ा की भावभूमि एक सी होते हुए भी आधुनिक कश्मीरी कविता में केंद्रीय भाव-बोध के आयाम भिन्न हैं। इन कश्मीरी कविताओं के रचनाकार पाकिस्तान समर्थित जेहादी आतंकवाद अलगाववाद के चलते बेदखल कर दिए गए कवि हैं। संसार को विदित है कि कश्मीर में पाकिस्तान समर्थित अलगाववाद जेहादी हिंसाचारघृणा की राजनीति के चलते कश्मीर के मूल निवासी लाखों कश्मीरी हिन्दुओं को सुनियोजित ढंग से मातृभूमि से आस्था के आधार पर बेदखल कर जलावतनी में धकेला गया।आज इतने दशकों बाद भी उस जेनोसाइड की दारुण स्मृतियाँ रोंगटे खड़े करती हैं।पारंपरिक संस्कृतिमूलक जीवन- शैली परस्पर सौहार्द मित्रताएंसहअस्तित्व को धत्ता बताते जेहादी विमर्श ने लोगों के पाँवों तले की ज़मीन ही छीन ली। निर्वासन-चेतना की ये समकालीन कश्मीरी कविताएं संघर्षरत् देशज शरणार्थियों की आहत भावनाओं का दस्तावेज़ तो है ही ये कविताएं एक गम्भीर सामाजिक उद्देश्य के साथ चलती हैं।अपने ही देश में शरणार्थी बने कश्मीरी कवियों की ये कविताएं इस नयी और विचलनकारी वस्तु-स्थिति का बेबाकी से वर्णन करती हैं जो उन्हें अलग महत्व प्रदान करती हैं ।इन कविताओं को पढ़कर एक संवेदनशील पाठक के भीतर एक प्रश्नाकुलता कुलबुलाने लगती है।यह जबरिया निर्वासन व्यक्ति अथवा समूह या समुदाय विशेष को उसकी जन्मभूमि से ही वंचित नहीं करताबल्कि उससे उसका संसार ही छीन लेता है जिसमें उसकी आत्मा बसी होती है।उसकी स्मृतियांतीज-त्यौहार परंपराएं धरोहर उसका पर्यावरणउसकी स्थान-चेतना लोकवार्तामातृभाषा साहित्य (यदि वो लेखक है तो उसका पाठक वर्ग भी) धीरे-धीरे उससे छिटकने लगता है।इसी विकट बेबसी में अस्मिता और अस्तित्वके प्रश्नों में उलझे निर्वासित कश्मीरी कवियों की इन कविताओं में गहन बिछोह की पीड़ा और प्रतिरोध दर्ज है।आधुनिक कश्मीरी कविता में हमें नब्बे के दशक से पहले भी ऐसे अनेक कवि मिलते हैं जिनकी कविताओं में इस विनाशकारी घटनाक्रम के पूर्वाभास की ध्वनियाँ मिलती हैं।आधुनिक भारतीय कविता के इतिहास के परिप्रेक्ष्य में नब्बे के दशक में घटित कश्मीरी कविता की जेनोसाइड-जनित निर्वासन-चेतना शोधार्थियों के लिए भी एक नया विषय है जिसके वैश्विक आयाम हैं ।इस दृष्टि से प्रस्तुत कश्मीरी कविताओं का महत्त्व और भी बढ़ जाता है।एकसाथ तीन तीन पीढ़ियों के शरणार्थी कवियों की प्रतिनिधि कविताओं का चयन और अनुवाद मैंने एक कर्तव्य- भावना से किया है।इन अनूदित कविताओं के पुस्तक रूप में आने तक अनेक वरिष्ठ कवियों का देहावसान हो चुका है मुझे अतीव प्रसन्नता होती यदि आज यह पुस्तक उनके भी हाथ में होती... -अग्निशेखर जम्मू
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