बेर्टोल्ट ब्रेष्ट महान जर्मन चिन्तक एवं कवि-नाटककार थे जो जीवनपर्यन्त अँधेरे की ताक़तों का कोप झेलते रहे और उनसे जूझते रहे। इस प्रक्रिया में उन्होंने जीवन और कविता की शक्ति की पहचान की और उनकी अजेयता में दृढ़ निष्ठा अर्जित की। ब्रेष्ट ने अपनी रचनाओं के ज़रिये न केवल मानवद्रोही-मानवद्वेषी शक्तियों पर हमला बोला बल्कि उनकी शक्ति के स्रोतों की भी शिनाख़्त की। उन्होंने पूँजीवाद की मानवद्रोही-कलाद्रोही अन्तर्वस्तु को तार-तार करते हुए जिजीविषा और युयुत्सा के गीत गाये। फ़ासीवाद के क़हर और युद्ध के विनाश के साक्षी और भोक्ता होने के नाते ब्रेष्ट ने अपने समकालीनों और आने वाली पीढ़ियों को सिखाया कि फ़ासीवाद से रोम-रोम से नफ़रत की जानी चाहिए और इसके विरुद्ध अन्तिम फ़ैसले तक लड़ाई लड़ी जानी चाहिए। बेर्टोल्ट ब्रेष्ट सर्वहारा कला-साहित्य के अप्रतिम सिद्धान्तकार थे। उनके इस पहलू पर अलग से विस्तृत चर्चा आज के समय की ज़रूरत है। ख़ासतौर पर ब्रेष्टियन नाट्यशास्त्र को आज नये सिरे से जानने-समझने की ज़रूरत है। समाजवादी यथार्थवाद के अग्रदूतों की क़तार में ब्रेष्ट का स्थान गोर्की आइज़ेस्ताइन स्तानिस्लाव्स्की हावर्ड फ़ास्ट राल्फ़ फ़ॉक्स आदि के बीच है। हाइने वेयेर्त और फ्रैलिगराथ जैसे पहली पीढ़ी के सर्वहारा कवियों की सर्जनात्मकता को ब्रेष्ट के कवि कर्म ने आगे विस्तार दिया। नाटककार के रूप में ब्रेष्ट ने शेक्सपियर-मौलियर-इब्सन आदि की यूरोपीय क्रान्तिकारी बुर्जुआ यथार्थवाद की धारा को आगे सर्वहारा यथार्थवाद के सीमान्तों के भीतर अद्वितीय विस्तार दिया। इस संकलन में ब्रेष्ट की 101 रचनाएँ शामिल की गयी हैं जिनका अनुवाद सुप्रसिद्ध हिन्दी लेखक मोहन थपलियाल ने मूल जर्मन से किया है।
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