यह संग्रह 53 कविताओं के साथ पाठकों के सामने प्रस्तुत है। कवि डॉ अनुपम कुमार ने ‘इन्द्रधनुषी मन’ में कलात्मक संयम के साथ ही मनोवैज्ञानिक परिपक्वता का भी परिचय दिया है। रूप और रस प्रेम और हास कला और विचार जीवन-दर्शन एवं आधुनिकता की चेतना ‘इन्द्रधनुषी मन’ में निबद्ध है। पाठकों को कविता पढने की रूचि बढ़ेगी ऐसी आशा है। कवि ने अपने अतीत को भी खंघाला है प्रेम के सन्दर्भ में जो कि बड़े हिम्मत की बात है। प्रेम का सूक्ष्म निरीक्षण और उसमें जिए गए सूक्ष्म मनोभावों का उचित अवलोकन ही नहीं वरन समय सापेक्ष मूल्यांकन भी किया है। काव्य रूपों का उपयोग करने में डॉ कुमार को किसी प्रकार की कोई अन्तर्बाधा होती नहीं जान पड़ती। कई बार वो ठेठ शब्दों का प्रयोग करके देसी रस भी पैदा कर देते हैं। कई बार वे एक से अधिक काव्य रूपों या छंदों का प्रयोग एक ही कविता में करते भी दिखते हैं। कुछ कविताओं में गहरी जीवन अनुभूति संवेदनशीलता भावनात्मकता हास्य-व्यंग भी है तो कहीं प्रेम के प्रति विद्रोह भी स्पष्ट परिलक्षित होता है। इनमें से कुछ कवितायें काल की सीमा में आबद्ध नहीं भी रहेंगी शायद। रसिक पाठक मनोरंजन के साथ एक नई दृष्टि भी पायें। भाषाई विविधता भी इस संग्रह का एक रंग है।
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