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About The Book
Description
Author
यह पुस्तक का शीर्षक देखकर सभी को यह ज्ञात हो रहा होगा कि यह मानव की जाति पर आधारित होगी। मैं आपको स्पष्ट कर देना चाहता हूँ की यह पुस्तक मानव की जाति नहीं परन्तु मानवजाति पर आधारित है। मानवजाति अर्थात् इंसानियत। सही मायने में फ्इंसान की नीयतय् से ही इंसानियत का जन्म हुआ है। यह इंसान की नीयत उसकी सोच पर आधारित है। फ्जहाँ सोच सही तो इंसानियत जागृत रहीय् अन्यथा वह मृत समान है। इंसानियत मानव-जीवन का एक ऐसे पहलु है जो आज अँधेरों की गहराई में दफ्रन कर दिया गया है। इसके मुख्य कारणों में से पहला कारण यह है की आज का मनुष्य - ईश्वर को मानता तो है परन्तु उन्हें अध्कि विश्वास अपने-अपने धर्म पर है। यदि मनुष्य ईश्वर पर विश्वास करे तो पिफर ध्र्म को मान्य करना आवश्यक ही नहीं रहेगा। किसी भी धर्म को मानना उचित है और अनिवार्य भी परन्तु हम यह भूल जाते हैं की जिस किसी ध्र्म का अनुसरण हम करते हैं उन सबके नियम किसी व्यक्ति अथवा प्रांत की सोच पर रचे गए हैं अर्थात् यह मान लिया जाए कि वह नियम उस व्यक्ति अथवा प्रांत की सोच-शक्ति तक सीमित हैं। मेरी पुस्तक आपको केवल इतना ज्ञात कराने की कोशिश करती है की इस मानव-शरीर में हमने अपने आपको हर तरह से सीमित कर दिया है पिफर चाहे वह हमारी सोच हो या पिफर हमारी विचार धाराएं। खुले नेत्रों से दिखाई देती सृष्टि को ही हम पूर्ण सत्य मान लेते हैं। हम यह भूल गए हैं की हमारे स्वयं के मस्तिष्क में एक ब्रह्माण्ड निहित है जिसमें यह सारी सृष्टि समाई है और वही हमें परम्ब्रह्म से जुड़ने का मार्ग भी बताती है। जिससे हम वैराग्य या मोक्ष भी कहते है परन्तु उसके लिए विवेक जागृति अनिवार्य है जिसके लिए हमें अपनी-अपनी सोच का विकास कर उन्हें विकारों द्वारा विकसित होने से बचाना होगा।