Insaniyat Ki Wapasi


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About The Book

सहसा उसे विश्‍वास नहीं हुआ कि कोई उल्टी-पैखाना करने से भी मर सकता है फिर वह जोर-जोर से रोने लगी। उसकी रुलाई सुनकर अमर और सुंदर चार साथियों के साथ आउटडोर पहुँचे। अमर ने झुककर बूढ़े शरीर की धड़कन और नब्ज देखी। कोई सुगबुगाहट नहीं थी। उन्होंने बुढ़िया की देह पर लगी मैल की परवाह किए बगैर तलुओं-तलहथियों को रगड़ा। तब तक पतोहू आँसू पोंछकर सिर से आँचल कंधे पर रख उन्हें कोसती रही थी ‘सरकार से रोकड़ा लेते हो हमें बिना दवा-ईलाज के मारने के लिए आए? हाय! मार डाला...तुमने उसे मार दिया। वहाँ क्या कर रहे हो बैठकर? तनखा बढ़ाना चाहते हो? अरे जान बचानेवाला भगवान् होता है। तुमने तो हमारी माई को मार डाला। शैतान हो तुम सब चले जाओ यहाँ से। हम अपनी माई को रिक्शा पर ले जाएँगे घर अकेले। मत छुओ हमारी माई को।’—इसी संग्रह सेइनसान की खुशियाँ गम ख्वाब वर्गगत संस्कारों तथा क्रियाओं का अंतर्विरोध चारों ओर पसरा है। मानवीय मूल्य टूटे हैं हर बार संवेदना उद्वेलित हुई है। प्रस्तुत कहानियों में लेखक ने इसी अंतर्विरोध को रेखांकित किया है। कहानियाँ एक से बढ़कर एक हैं। मनोरंजन ही नहीं अंतर्मन को छू लेनेवाली ये कहानियाँ पाठकों को अवश्य पसंद आएँगी।
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