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About The Book
Description
Author
कहीं कहीं हो गया हताश पर अभी मैं चुका नहीं जूझ रहा जीवन झंझावत से अभी में झुका नहीं I कुछ कर्ज़ बाकी रह गए जीवन में चुकाने के लिए कुछ फ़र्ज़ बाकी रह गए अपनों के निभाने के लिए I माना कुछ पल हताशा निराशा मुझमे आ गई थी संघर्ष से हो विमुख और जीने की तब चाह नहीं थी I हुआ एहसास पहली बार तेरे रूप कई पहचाने गए मानवों के संग रह रहे देवदूत कई पहचाने गए I कृतघ्न कहे न कोई सबका आभार व्यक्त कर जायेंगे यूँ आना जाना ठीक नहीं अब शांत चित्त हम जायेंगे I.