इश्क दरअसल दो अज्ञात कुल-शील निम्न वर्ग के निश्छल युवक-युवती के नाजुक दिलों की कहानी है जो पुरुष-वर्चस्व सामंती शोषण-जाल में कैद हैं। आज सारे स्त्री विमर्श और स्त्री- सशक्तीकरण आन्दोलनों के बावजूद आज स्त्री कहीं भी आजाद नहीं है। आज के पूँजीवादी आधुनिक-उत्तर आधुनिक युग में भी वह सामंती पुरुष वर्चस्वी शिकंजे में पिस रही है। घर में वह सामंती मूल्यों वाली मर्यादा और प्रतिष्ठा के बंधन में कैद रहती है तो आफिस में वह आपस की अधीनस्थ के रूप में वल्नरलेबलिटी की शिकार होकर दैहिक-मानसिक शोषण झेलती है। सामंती मूल्यों की जंजीर में कैद सुमित्रा मुक्ति की छटपटाहट में किस तरह धीरे-धीरे अपने अंदर की दुर्गा को जगाती है और वह वफादार नौकर कोंदा की जड़बुद्धि पर से पर्दा हटा कर हथियार के रूप में उसका उपयोग करती हैं
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