फ़िल्मी गीतों से झाँकते हुए सुनहरे दौर की आवाज़ फिल्मी संगीत की दुनिया एक अलग ही जादू बिखेरती है। इसकी छांव में हमारा बचपन बीता है और इसके सुरों में हमारी जवानी बसी है। फिल्मी गानों ने समाज के हर तबके को एक सूत्र में बाँधने का काम किया है। कभी ‘तेरे बिना ज़िंदगी से कोई शिकवा’ सुनकर आँखें भीग जाती हैं तो कभी ‘दम मारो दम’ जैसे गीत जोश से भर देते हैं। इस किताब में ऐसे ही गीतों का ज़िक्र है जिनके बोल संगीत और गायकी ने इतिहास रच दिया। इन गानों की पृष्ठभूमि निर्माण की कहानी और उनका सामाजिक-सांस्कृतिक प्रभाव बहुत ही रोचक ढंग से बताया गया है। कई ऐसे किस्से और तथ्य हैं जिन्हें जानकर पाठक चकित रह जाएगा। यह पुस्तक सिर्फ संगीत प्रेमियों के लिए ही नहीं बल्कि उन सभी के लिए है जो भारतीय सिनेमा और समाज के इतिहास में रुचि रखते हैं। यह किताब बताएगी कि कैसे फ़िल्मी गानों ने समय-समय पर समाज को आवाज़ दी उसे दिशा दी और उसका दर्पण बनकर उभरे।
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