*COD & Shipping Charges may apply on certain items.
Review final details at checkout.
₹150
All inclusive*
Qty:
1
About The Book
Description
Author
अधिकार से पहले कर्तव्य का निर्वाह करना संपूर्ण संसार की अस्त-व्यस्त हुई व्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने का अचूक उपाय है। भारत की संस्कृति मानव को अधिकार प्रेमी न बनाकर कर्तव्यपरायण बनाने वाली संस्कृति है। अपनी इसी विशिष्टता के कारण वैदिक संस्कृति संसार के लिए अनुकरणीय रही है। प्रस्तुत पुस्तक 'इतनी शक्ति हमें देना दाता' के अध्ययन से यह पूर्णतया स्पष्ट और सिद्ध हो जाता है कि हम अपने जन्म से लेकर मृत्यु पर्यंत सदा कर्तव्यों की डोर में एक दूसरे से बंधे हुए रहते हैं। अधिकारों के लिए लड़ने-झगड़ने से समस्या का समाधान नहीं होता बल्कि गुत्थी और अधिक उलझ जाती है। लेखक का मानना है कि अधिकारों की मारामारी से विखंडन की प्रक्रिया पैदा होती है जबकि कर्तव्यों को निभाने से एक दूसरे के प्रति आत्मीय भाव विकसित होता है। यही प्रेम है और यही धर्म है।माता-पिता के प्रति हमारे कर्तव्य भाई-बहन के कर्तव्य पति-पत्नी के कर्तव्य समाज के प्रति हमारे कर्तव्य राष्ट्र के प्रति कर्तव्य ईश्वर के प्रति कर्तव्य आदि विषयों को लेकर लेखक ने जिस गंभीरता का उत्कृष्ट चिंतन प्रस्तुत किया है उससे समाज की सुव्यवस्था की एक स्पष्ट रूपरेखा खींचने में पुस्तक सफल रही है। लेखक का मानना है कि संसार की जितनी भी विचारधाराएं राजनीतिक व सामाजिक क्षेत्र में आज भी कार्य करती दिखाई देती हैं वे सबकी सब असफल सिद्ध हो चुकी हैं क्योंकि उन्होंने मनुष्य को अधिकारों के लिए लड़ना सिखाया है। जबकि भारत की सनातन संस्कृति आज भी इसीलिए जीवंत है क्योंकि वह अधिकारों की बात न कर कर्तव्यों की बात करती है।.