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About The Book
Description
Author
कात्यायनी समकालीन हिन्दी कविता के उन विरल हस्ताक्षरों में से एक हैं जिनकी कविताओं ने विगत दो दशकों के दौरान आलोचकों- कवियों के सीमित संसार और अकादमिक सीमान्तों का अतिक्रमण करके आम पाठकों के बीच अपनी जगह बनायी है और लोकप्रियता अर्जित की है। मानवीय संवेदना स्मृतियों कल्पना भविष्य-स्वप्न और कविता से बैरभाव रखने वाले हमारे समय में ऐसा इसलिए सम्भव हो सका है क्योंकि कात्यायनी ने जीवन-रूढ़ियों को तोड़ने के बहुआयामी संघर्ष के दौरान निरन्तर काव्य-रूढ़ियों को भी तोड़ा है और सहजता की लय वैविध्य की ताज़गी और दुर्निवार युयुत्सु जिजीविषा की ऊष्मा के साथ अलगाव की दीवारों को तोड़कर लोक-चित्त में कविता के लिए जगह बनायी है। उनकी कविता सत्ता के रहस्यीकरण के साथ ही कविता के रहस्यीकरण के भी ख़िलाफ़ है। पारम्परिक बिम्ब-विधान और प्रचलित काव्यात्मकता का निषेध करती हुई वह अपने वर्णक्रम को निरन्तर विस्तार देती चलती है ज्ञानात्मक संवेदना और संवेदनात्मक ज्ञान के द्वन्द्वात्मक रिश्तों की बार-बार नये सिरे से और ज़्यादा गहराई में जाकर पड़ताल करती है स्मृति और स्वप्नों के बीच के द्वन्द्वात्मक तनाव के बीच जीवन की गति का बार-बार नये सिरे से सन्धान करती है और इस प्रक्रिया में अपना एक नया सौन्दर्यशास्त्र रचती है। ‘जादू नहीं कविता’ में कात्यायनी की कुछ वे कविताएँ हैं जो ‘इस पौरुषपूर्ण समय में’ की कविताओं के बाद लिखी गयी हैं। शेष अधिकांश कविताएँ 1987 से 1995 के बीच की वे कविताएँ हैं जो ‘सात भाइयों के बीच चम्पा’ और ‘इस पौरुषपूर्ण समय में’ संकलन में शामिल नहीं हो पायी थीं।