यह किताब दैनिक भास्कर में प्रकाशित “परदे के पीछे” आलेखों के लेखक जयप्रकाश चौकसे की जीवनी का अद्भुत वर्णन है। इस जीवनी के माध्यम से उनके पाठक उस चैतन्य ऊर्जा की झलक पा सकेंगे जो उन्हें अस्सी वर्ष की आयु में भी ऊर्जा से सराबोर निरंतर लेखन कार्य में रत किए हुए हैं। जयप्रकाश चौकसे जितने स्पष्ट और मुखर वे अपनी कलम में हैं उतने ही व्यक्तिगत जीवन में भी हैं। वक्त के साथ चलते हुए एक अनुशासित योद्धा की तरह वे ज़िंदगी के मैदान में डटे हुए हैं। दैनिक भास्कर में प्रकाशित कॉलम उनके बदलते सामाजिक परिवेश के सूक्ष्म अवलोकन का प्रमाण है जिसे वे हर रोज़ सिनेमा के परदे पर नयी पटकथा के साथ पाठकों के लिए रचते हैं। इस किताब लेखिका ने जयप्रकाश चौकसे के जीवन की घटनाओं को उन्हीं के शब्दों में सीधे और सरल ढंग से वर्णित करने का प्रयास किया है।
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