हरिराम मीणा आदिवासी समाज के विशेषज्ञ और चिंतक हैं जिन्होंने देश-भर में आदिवासी इलाकों में घूम-घूम कर आदिवासियों के जीवन पर गहन अध्ययन किया है। इस लम्बे अध्ययन के आधार पर आदिवासियों के समकाल और भविष्य की चुनौतियों को इस पुस्तक में प्रस्तुत किया है।जिन्हें आज हम आदिवासी के रूप में पहचानते हैं वे ही लोग भारत के मूल निवासी हैं और इसका संदर्भ रामायण महाभारत पुराणों तथा अन्य प्राचीन अभिलेखों में मिलता है। आदिवासी देश के कई क्षेत्रों में बसे हुए हैं और हर आदिवासी समुदाय की दूसरों से अलग अपनी खास संस्कृति भाषा और सामाजिक परंपरा है। इन भिन्नताओं के बावजूद सभी आदिवासी समुदायों में कुछ समान विशेषताएँ मिलती हैं जैसे उनका प्रकृति-प्रेम जीव-जंतुओं के साथ मिल-जुलकर रहना स्त्री-पुरुष के बीच समानता और निजी संपत्ति की अवधारणा का अभाव। चूँकि आदिवासी अधिकांश जंगल में रहते हैं तो गैर आदिवासी समाज में अक्सर यह सोच होती है कि ये लोग पिछड़े असभ्य और जंगली हैं। लेकिन जब उनके जीवन की सहजता सरलता सामूहिकता निःस्वार्थता भाईचारा अन्याय का प्रतिकार और पृथ्वी के पारिस्थितिकीय संतुलन की दृष्टि से हम देखते हैं तो आदिवासी समाज कथित शिक्षित समृद्ध और सभ्य समाज से बेहतर दशा में मिलता है। आदिवासी प्राकृतिक संपदा को ट्रस्टी या कस्टोडियन की हैसियत से सुरक्षित रखते हैं और यही कारण है कि आज देश में जितनी भी प्राकृतिक-संपदा बची हुई है वह मुख्यतः आदिवासी इलाकों में है। हरिराम मीणा की यह पुस्तक आदिवासी समाज को बेहतर समझने की ओर एक महत्त्वपूर्ण प्रयास है।
Piracy-free
Assured Quality
Secure Transactions
Delivery Options
Please enter pincode to check delivery time.
*COD & Shipping Charges may apply on certain items.