janhvi

About The Book

‘ख्वाहिशों और सपनों में फर्क’ ‘धर्म और अध्यात्म में फर्क’ ‘प्रेम में होने और प्रेम के होने में फर्क’ की बात करता यह उपन्यास ये सोचने पर मजबूर करता है कि जीवन जीते-जीते कब हम मरना सीख जाते हैं और जीवन से दूर होते चले जाते हैं। यह उपन्यास हमें बताता है कि वापस लौटकर आने के लिए हमें खुद के अन्दर झाँकने के अलावा और कोई विकल्प नहीं तलाशना चाहिए सब कुछ इन्सान के अंतर्मन में ही है वहीं मिलेगा। हमारी मदद हम खुद कर सकते हैं और अगर इस काबिल हैं तो दूसरों को भी रास्ता दिखाया जा सकता है। तलाकशुदा से प्रेम बाल वैधव्य बुज़ुर्गों की वर्तमान दशा-दिशा स्वयं के ख़्वाबों का बिखराव उनका खो जाना। व्यक्तित्व जिसे निखारने का वादा इंसान को स्वयं से करना चाहिए किन्तु जब यही सब बातें आरोप-प्रत्यारोप के रूप में जाह्नवी पर ही भारी पड़ने लगती हैं तब उसका खुद से जूझना और इन सब से पार पाने का स़फर ही उपन्यास की आत्मा है। इंसान का दोहरा व्यवहार जब आइने के रूप में उसके सामने आकर उस पर लानत भेजता है तब उसे क्या करना चाहिए?
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