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About The Book
Description
Author
यह बात मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि संवैधानिक विषयों पर मूल हिंदी में लिखने वाले ऐसे किसी लेखक या स्तम्भकार से मेरी अब तक मुलाकात नहीं हुई जिसमें कनक तिवारी जैसी स्पष्टता और समझदारी हो! उनके पास सिर्फ समझ और ज्ञान ही नहीं अपने विचारों को व्यक्त करने की अदभुत भाषा भी है-प्रवाहपूर्ण और प्रांजल ! भारतीय संविधान और आज के संदर्भ को लेकर उनकी कई टिप्पणियां न सिर्फ विचारोत्तेजक हैं अपितु देश के बड़े ख्यातिलब्ध संविधानविदों और अन्य क्षेत्रों के विद्वानों के विमर्श में नया आयाम जोड़ती हैं। कनक तिवारी की इस बात के लिए तारीफ की जानी चाहिए कि उन जैसे लोग अपनी इस ऐतिहासिक जिम्मेदारी को निभाने की हरचंद कोशिश कर रहे हैं। उनकी इस तरह की कोशिश युवाओं के लिए निस्संदेह बहुत प्रेरक है। कनक तिवारी ऐसे तमाम सवालों पर साहस और संजीदगी के साथ सोचते और लिखते हैं। श्री तिवारी बहुत विस्तार और विद्वतापूर्ण ढंग से संविधान की मूल भावना को व्याख्यायित करते हैं। इन मूल्यांकनों के जरिये हमारी आज की युवा पीढ़ी को वह मौजूदा चुनौतियों से जूझने की वैचारिक रोशनी देते है। : उर्मिलेश (वरिष्ठ पत्रकार)