Jas Panihar Dhare Sir Gagar
Hindi

About The Book

ध्यान अपूर्व अनुभव है। उसकी एक किरण भी ऐसी संपदा है कि इस जगत की सारी संपदाएं फीकी पड़ जाती हैं। लेकिन सम्हल कर बहुत होश सम्हाल कर चलना। कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारी वासना ध्यान पर इतने जोर से पकड़ जाए कि ध्यान को नष्ट कर दे। इस नियम को खयाल में लेना--ध्यान फलता तभी है जब वासना नहीं होती। ध्यान की वासना भी ध्यान में बाधा बन जाती है। ओशो पुस्तक के कुछ मु‘य विषय-बिंदु: • शिष्य और विद्यार्थी का फर्क • समर्पण का क्या अर्थ होता है? • श्रद्धा का क्या अर्थ है? • आंतरिक निकटता का अर्थ • ध्यान का क्या अर्थ होता है?• सम्यक जिज्ञासा क्या है?
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