प्रख्यात बादशाह टीपू सुल्तान की वंशज नूर इनायत ख़ान द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान एक गुप्तचर थीं। वे पहली महिला रेडियो ऑपरेटर थीं जिन्हें जर्मनी के कब्ज़े वाले फ्रांस में भेजा गया था। उनके साथ छल किया गया और 13 सितम्बर 1944 को उनकी हत्या कर दी गई। तब वे मात्र तीस वर्ष की थीं। इस पुस्तक के प्रकाशन और लोकप्रियता तथा जून 2010 में श्राबनी बसु द्वारा चलाए गए हस्ताक्षर अभियान का ही परिणाम था कि लन्दन विश्वविद्यालय के कुलपति ने नूर के घर के करीब गॉरडन स्क्वैयर में उनका स्मारक स्थापित करने की इजाज़त दी थी। ब्रिटिश सरकार के जॉर्ज क्रॉस और फ्रांस के क्रोआ द गेर से सम्मानित नूर इनायत ख़ान पहली एशियाई महिला हैं जिन्हें ब्रिटेन में उनका स्मारक स्थापित कर सम्मानित किया गया है। वे उस ‘रिमार्केबल लाइव्स’ नामक श्रृखला का भी हिस्सा हैं जो 1914 में जन्मी उन शख़्सियतों पर केन्द्रित है जिनकी उपलब्धियों को सम्मानित करते हुए रॉयल मेल ने उन पर डाक टिकिट जारी किए हैं। यह नूर के जीवन की सबसे निर्णायक महत्त्व की पुस्तक है। ‘द्वितीय विश्व युद्ध की एक अत्यन्त प्रेरणादायी कहानी’ -द डेली मेल ‘श्राबनी बसु नूर की ज़िंदगी के अलग-अलग टुकड़ों को जोड़कर हिन्दुस्तान के लिए एक भूले हुए व्यक्तित्व को सामने लाई हैं’ -द हिन्दू नूर इनायत ख़ान के बारे में अधिक जानकारी के लिए देखें www.noormemorial.org
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