Jati Aur Varg : Ek Marxvadi Drishtikon


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About The Book

भारत केे कम्युनिस्ट आन्दोलन के सामने जाति का प्रश्न वाद-विवाद का प्रश्न रहा है। जाति के प्रश्न पर अम्बेडकरवाद और मार्क्सवाद के बीच लम्बी बहस रही है। हालाँकि ऐसी धाराएँ मौजूद हैं जो मार्क्सवाद और अम्बेडकरवाद के बीच समन्वय की बात करती हैं। यह यक्ष प्रश्न अब भी मौजूद है कि अम्बेडकर जाति प्रश्न के समाधान या जाति उन्मूलन की क्या कोई आमूलगामी परियोजना प्रस्तुत करते हैं? मार्क्सवादी नज़रिये से इस प्रश्न पर हाल में काफ़ी कुछ लिखा-पढ़ा गया है। जाति प्रश्न पर अम्बेडकर के विचारों को मार्क्सवाद किस नज़रिये से देखता है इस पर रंगनायकम्मा की एक पुस्तक पहले आ चुकी है जिस पर काफ़ी विचारोत्तेजक बहस जारी है। मार्क्सवाद पर जाति प्रश्न की उपेक्षा या वर्ग अपचयनवादी विश्लेषण तक सीमित रहने और अम्बेडकर की दृष्टि को न समझ पाने या उसके प्रति न्याय न करने के आरोप दलितवादी बुद्धिजीवियों की ओर से प्राय: लगते रहे हैं। रंगनायकम्मा की पुस्तक ‘‘जाति’ प्रश्न के समाधान के लिए बुद्ध काफ़ी नहीं अम्बेडकर भी काफ़ी नहीं मार्क्स ज़रूरी हैं’ के तेलुगु तथा अंग्रेज़ी में प्रकाशन के बाद इस पर व्यापक बहस चली। हिन्दी में राहुल फाउण्डेशन ने 2008 में इसे प्रकाशित किया। तब से ही यह लगातार बहस के केन्द्र में रही है। उस पुस्तक के प्रकाशन के बाद दलितवादी बुद्धिजीवियों की ओर से उन पर तरह-तरह के आरोप लगाये गये। रंगनायकम्मा ने उनका मुद्देवार तार्किक उत्तर दिया है। इस संकलन के अधिकतर लेख उन प्रश्नों और आरोपों के जवाब में लिखे गये पोलेमिकल लेख हैं जो जाति प्रश्न के मार्क्सवादी विश्लेषण और रंगनायकम्मा के लेखन पर लगाये जाते रहे हैं जो जाति प्रश्न के मार्क्सवादी विश्लेषण और रंगनायकम्मा के लेखन पर लगाये जाते रहे हैं।
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