जौन एक मुँहफट, बेबाक और बागी शायर थे। आप समझ लीजिए कि अगर आज की तारीख में वे ज़िंदा होते तो पाकिस्तान में शायद क़त्ल कर दिए जाते। आप जौन को जितना पढ़ेंगे उतना जौन खुलते आएँगे। कुछ दिन में आप इस जौन वाइरस से एडिक्टड हो जाएँगे और एक तिश्नगी आपका शिकार करने लगेगी। नए शायरों की ग़ज़लें भी अब मीर, मोमिन, ग़ालिब, फ़ैज़, ख़ुमार के आगोश से सिमटती हुई जौन एलिया की बारगाह में आ गई हैं। जौन के शेर कहने का अंदाज़ ऐसा है कि उसमें ड्रामा भी है, झुंझलाहट भी है, बने बनाए नियमों को तोड़ देने की जिद भी है और दर्शन भी है। हिंदुस्तान के अमरोहा में पैदा हुए और पाकिस्तान के कराची की मिट्टी में दफ़्न हुए जौन एलिया वह शायर हैं जो हयात रहते हुए ही उर्दू अदब की दुनिया में अच्छी-ख़ासी मक़बूलियत हासिल कर गए थे। आज जब जौन हमारे बीच नहीं हैं, तो उनकी नज़्मों और ग़ज़लों के अलावा उनके ज़ाती ज़िंदगी के क़िस्से भी बड़े लगाव के साथ सुने और सुनाए जाते हैं। इस किताब में ग़ज़लें, नज़्में, क़त'आत और सबसे ख़ूबसूरत पहलू ‘जौनियत’ मतलब जौन की शख़्सियत के कुछ अनछुए पहलुओं को छूने की कोशिश की गई है। यक़ीनन इस किताब को पढ़कर आप एक नई दुनिया में दाख़िल होएँगे।
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