Jeevan Jine Ki Kala (जीवन जीने की कला) + Apke Avchetan Man Ki Shakti : आपके अवचेतन मन की शक्ति + Chanakya Neeti with Chanakya Sutra Sahit (चाणक्य नीति चाणक्य सूत्र सहित) - In Hindi (Set of 3 Books)

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जीवन की कला से मेरा यही प्रयोजन है कि हमारी संवेदनशीलता हमारी पात्रता हमारी ग्राहकता हमारी रिसेप्टिविटी इतनी विकसित हो कि जीवन में जो सुंदर है जीवन में जो सत्य है जीवन में जो शिव है वह सब-वह सब हमारे हृदय तक पहुंच सके। उस सबको हम अनुभव कर सकें लेकिन हम जीवन के साथ जो व्यवहार करते। हैं उससे हमारे हृदय का दर्पण न तो निखरता न निर्मल होता न साफ होता; और गंदा होता और धूल से भर जाता है। उसमें प्रतिबिंब पड़ने और भी कठिन हो जाते हैं। जिस भांति जीवन को हम बनाए हैं-सारी शिक्षा सारी संस्कृति सारा समाज मनुष्य के व्यक्तित्व को ठीक दिशा में नहीं ले जाता है। बचपन से ही गलत दिशा शुरू हो जाती है और वह गलत दिशा जीवन भर जीवन से ही परिचित होने में बाधा डालती रहती है। पहली बात जीवन को अनुभव करने के लिए एक प्रामाणिक चित्त एक शुद्ध दिमाग चाहिए। हमारा सारा चित्त औपचारिक है फार्मल है प्रामाणिक नहीं है। न तो प्रामाणिक रूप से कभी प्रेम न कभी क्रोध न प्रामाणिक रूप से कभी हमने घृणा की । है न प्रामाणिक रूप से हमने कभी क्षमा की है। हमारे सारे चित्त के आवर्तन हमारे सारे चित्त के रूप औपचारिक हैं झूठे हैं मिथ्या हैं। अब मिथ्या चित्त को लेकर जीवन के सत्य को कोई कैसे जान सकता है? सत्य चित्त को लेकर ही जीवन के सत्य से संबंधित हुआ जा सकता है। हमारा पूरा दिमाग हमारा पूरा चित्त हमारा पूरा मन मिथ्या और औपचारिक है। इसे समझ लेना उपयोगी है। सुबह ही आप अपने घर के बाहर आ गए हैं और कोई राह पर दिखाई पड़ गया है और आप नमस्कार कर चके हैं। और आप कहते हैं कि उससे मिलके बड़ी खुशी हुई आपके दर्शन हो गए लेकिन मन में आप सोचते हैं कि इस दुष्ट का सुबह ही सुबह चेहरा कहां से दिखाई पड़ गया । यह अशुद्ध दिमाग है यह गैर-प्रामाणिक मन की शुरुआत हुई। चौबीस घंटे हम ऐसे दोहरे ढंग से जीते हैं तो जीवन से कैसे संबंध होगा? बंधन पैदा होता है दोहरेपन से। जीवन में कोई बंधन नहीं है।+सिकंदर ने पंजाब गांधर आदि राज्यों को जीतकर उन्हें अपने अधीन कर लिया था। वहां यवन सैनिकों के अत्याचारों से लोग त्रास्त थे। चारों तरफ आतंक व्याप्त था। बहू-बेटियों की अस्मिता असुरक्षित थी। यवन पूरे भारत को जीतना चाहते थे। स्थिति बड़ी दयनीय थी। यवनों के राज्य का विस्तार पूरे भारतवर्ष में हो यह चाणक्य जैसे आत्मसम्मानी देशभक्त के लिए असहनीय था। ऐसे में चाणक्य ने एक ऐसे बालक को शस्त्रा-शास्त्रा की शिक्षा देकर यवनों के सामने खड़ा किया जो विद्वान तो था ही साथ ही राजनीति और युद्ध नीति में भी निपुण था। यही बालक चाणक्य के सहयोग से नंदवंश का नाश करके चंद्रगुप्त मौर्य के नाम से मगध् का शासक बना। उसने यवनों को भारत की सरहद के पार कर भारतीय सभ्यता और संस्कृति की रक्षा की तथा देश में एकता व अखंडता की स्थापना की।
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