Jeevan Ke Solah Sanskar

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जीवन के सोलह संस्कारः संस्कार का सामान्य अर्थ है संस्कृत करना या शुद्ध करना उपयुक्त बनाना या सम्यक करना आदि किसी साधारण या विकृत वस्तु को विशेष क्रियाओं द्वारा उत्तम बना देना ही उसका संस्कार है। इस साधारण मनुष्य के जीवन को विशेष प्रकार की धार्मिक क्रियाओं-प्रतिक्रियाओं द्वारा उत्तम बनाया जा सकता है। जिससे वह जीवन में परम उत्कर्ष को प्राप्त कर सके यह विशिष्ट धार्मिक क्रियाएं ही संस्कार' है। जिस प्रकार खान से सोना हीरा आदि निकलने पर उसमें चमक प्रकाश आदि सौंदर्य के लिए उसे तपाकर - तराशकर या उसका मल हटाकर एवं चिकना करना आवश्यक होता है। ठीक उसी प्रकार मनुष्य में मानवीय शक्ति का आधान होने के लिए उसे सुसंस्कृत करना संस्कारवान बनाने के लिए उसका पूर्णतया विधिवत संस्कार संपन्न करना आवश्यक है विधि पूर्वक संस्कार साधन से दिव्यज्ञान उत्पन्न करके आत्मा को परमात्मा के रूप में प्रतिष्ठित करना ही संस्कार है। मानव जीवन प्राप्त करने की सार्थकता भी इसी में है। संस्कार मनुष्य को पाप और आज्ञान से दूर रखकर आचार-विचार और ज्ञान विज्ञान से संयुक्त करते हैं। संस्कारों से आत्मा की शुद्धि होती है विचार व कर्म शुद्ध होते हैं इसीलिए संस्कारों की आवश्यकता है। अतः गर्भस्थ शिशु से लेकर मृत्यु पर्यंत जीव के मलों का शोधन सफाई आदि कार्य विशिष्ट विविध क्रियाओं को मंत्रों से पूर्ण करने को संस्कार कहा जाता है।
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