Jeevan-Mrityu KalChakra


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About The Book

युगों-युगों से मानव प्रयासरत है कि वह मुत्यु पर विजय प्राप्त कर सके। वह इच्छानुसार जीवन जी सके पर उसे इसमें लेशमात्र भी सफलता प्राप्त नहीं हो सकी है। जो जन्मा है उसका मरण निश्चित है; फिर भी शरीर में बसनेवाली आत्मा अमर है। पुनर्जन्म के इस चक्र का भलीभाँति अध्ययन कर देश-देशांतर में होनेवाली घटनाओं को प्रामाणिक रूप से उद्यत करते हुए इस पुस्तक का सृजन श्री रमानाथ खैरा ने किया है। प्रत्येक जन्म में प्रारब्ध के आधार पर जीवन जीता हुआ प्राणी अपने कर्मों का फल भोगता है और अपने पुरुषार्थ के माध्यम से ही इसे कम कर सकता है ताकि अगले जन्म में उसे वर्तमान जन्म के पुरुषार्थ से कम कष्ट भोगना पड़े। इसके लिए उन्होंने आधारभूत ग्रंथों उपनिषद् वेदांत सूत्र और श्री भगवद्गीता का गहरा अध्ययन किया है। जगह-जगह गीता के उपदेशों के आधार पर धर्म समाज जीवन मृत्यु लोक परलोक की मर्मज्ञतापूर्ण विवेचना करने में खैराजी सफल हुए हैं। शुभ-अशुभ कर्म जीवन में लाभ-हानि सफलता या असफलता में भी प्रारब्ध का परिणाम होता है। खैराजी ने शुभ कर्मों को अगले जन्म के सुखों का आधार माना है लेकिन जन्म-जन्म के इस दुःखदायी चक्र से छूटने के लिए मोक्ष या मुक्ति के मार्ग को भी खोजने का महान् प्रयास किया है। आशा है यह पुस्तक अदृश्य जगत् के रहस्य खोजनेवाले ज्ञान-पिपासुओं को ज्ञान की वर्षा से सिंचित करेगी। —डॉ. भागीरथ प्रसाद (आमुख से).
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