“व्यक्ति अपने आप से भाग नहीं सकता; वह बस इतना ही कर सकता है कि स्वयं को समझे। वही उसका अपना खालीपन है अकेलापन है; और जब तक वह इसको अपने आप से अलग कोई चीज़ मानता है वह भ्रम-भ्रांति में तथा अंतहीन संघर्ष में लगा रहेगा। जब वह प्रत्यक्ष रूप से अनुभूत कर लेता है कि अपना अकेलापन वह स्वयं ही है केवल तभी भय से मुक्ति हो पाती है।” ‘जीवन संवाद - 1’ स्वतंत्रचेता दार्शनिक तथा शिक्षक जे. कृष्णमूर्ति के साथ आगंतुक जिज्ञासुओं के वार्तालाप का संग्रह है। यह पुस्तक ‘Commentaries on Living - 1’ का हिन्दी अनुवाद है जिसमें श्रोता जीवन के विविध विषयों पर कृष्ण जी के समक्ष प्रश्न रख उनका उत्तर चाहते। लेकिन कृष्ण जी उन प्रश्नों व समस्याओं के उत्तर देने के साथ उनकी गहराइयों में पैठ करते हुए उनके प्रश्नों से जुड़े सभी आयाम उजागर करते हैं। ‘विचार और प्रेम’ ‘राजनीति’ ‘सत्य की खोज’ ‘विश्वास’ ‘अंतर्विरोध’ ‘मन की व्यस्तता’ ‘सौंदर्य’ एवं ‘सुरक्षा’ अनेक विषयों पर प्रश्न और उत्तरों का मंथन एवं संवाद हमारे अपने प्रश्नों को भी स्पर्श करता चलता है।
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