Jharkhand ke Adivasi : Pahchan ka  Sankat


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About The Book

यह सच है कि आज के युवा अपनी भाषा-संस्कृति के बारे मेंगहरी समझ नहीं रखते हैं। दुनिया की चकाचौंध में वे खोते जा रहे हैं। अपने पर्व-त्योहार और अपनी भाषा के बारे में वे अधिक जानते नहीं हैं। इस पुस्तक में कई ऐसे लेख हैं जो झारखंड की भाषा-संस्कृति से जुड़े हैं। इसमें सोहराय सरहुल और अन्य त्योहारों की महत्ता बताने का प्रयास किया गया है। प्रभाकर तिर्की ने एक लेख और आँकड़ों के माध्यम से यह बताना चाहा है कि कैसे झारखंड में आदिवासी कम होते जा रहे हैं। महादेव टोप्पो ने आदिवासी साहित्य दशा और दिशा के जरिए आदिवासी भाषाओं को समृद्ध करने का रास्ता बताया है। एक दुर्लभ लेख ‘आदिवासियत और मैं’ है जिसे मरांग गोमके जयपाल सिंह ने लिखा है। इसके अलावा पुष्पा टेटे रोज केरकट्टा हरिराम मीणा जेवियर डायस पी.एन.एस. सुरीन आदि के लेख हैं जिनमें दुर्लभ जानकारियाँ हैं जो आसानी से उपलब्ध नहीं होतीं। ऐसे लेखों को संकलित कर पुस्तक का आकार देने के पीछे एक बड़ा कारण यह है कि ये लेख आगाह करनेवाले हैं हमें जगानेवाले हैं। ये महत्त्वपूर्ण लेख हैं जिनका उपयोग शोधछात्र कर सकते हैं नीतियाँ बनाने में सरकार कर सकती है। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि ये युवाओं को अपनी भाषा-संस्कृति को समृद्ध बनाने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।
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