Jharkhand Ke Amar Krantikari "Birsa Munda Evam Sidhu-Kanhu" (झारखण्ड के अमर क्रांतिकारी "बिरसा मुंडा एवं सिधु-कान्हू")

About The Book

आदिवासियों का संघर्ष अट्ठारहवीं शताब्दी से आज तक चला आ रहा है। 1766 के पहाड़िया-विद्रोह से लेकर 1857 के गदर के बाद भी आदिवासी संघर्षरत रहे। सन् 1895 से 1900 तक बिरसा मुंडा का महाविद्रोह ‘ऊलगुलान’ चला। आदिवासियों को लगातार जल-जंगल-जमीन और उनके प्राकृतिक संसाधनों से बेदखल किया जाता रहा और वे इसके खिलाफ आवाज उठाते रहे। 1895 में बिरसा ने अंग्रेजों की लागू की गयी जमींदारी प्रथा और राजस्व-व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई के साथ-साथ जंगल-जमीन की लड़ाई छेड़ी थी। उन्होंने सूदखोर महाजनों के खिलाफ भी जंग का ऐलान किया। ये महाजन जिन्हें वे दिकू कहते थे कर्ज के बदले उनकी जमीन पर कब्जा कर लेते थे। यह मात्र विद्रोह नहीं था बल्कि यह आदिवासी अस्मिता स्वायतत्ता और संस्कृति को बचाने के लिए महासंग्राम था।.
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