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About The Book
Description
Author
दया शंकर आज की पोर्न एडिक्ट पीढ़ी की नुमाइन्दगी करने वाला एक आम शख्स था जिसे अगर सामान्य भाषा में सेक्स बीमार कहा जाये तो गलत नहीं होगा। क्या आपने आसपास कोई ऐसा किरदार देखा है जो एक तरह से सेक्स बीमार हो। जिसके लिये कोई भी कैसी भी औरत एक लजीज दोप्याजे गोश्त की हांडी से ज्यादा और कुछ नहीं... औरत का हर अंग जिसमें एक उत्तेजना पैदा करता हो... कंसंट्रेट करते-करते जिसने अपनी कल्पनायें इतनी जीवंत कर ली हों कि वह दुनिया की किसी भी लड़की औरत के साथ एक आभासी संसर्ग में भी वैसा ही मजा पा लेता हो जैसा कोई इंसान हकीकत के संसर्ग में पायेगा। इस कहानी का किरदार एक ऐसा ही शख्स दया शंकर दूबे है जो लखनऊ का रहने वाला एक आम इंसान है लेकिन जिसकी उन्मुक्त यौनेच्छायें उसे भारत से अमेरिका ले जाती हैं और अमेरिका में दो औरतें उसे ऐसी साजिश के गहरे भंवर में फंसा देती हैं जहां से उसका निकलना लगभग असंभव हो जाता है। लखनऊ से ले कर अमेरिका और योरप तक उसे वह सारा रोमांच वह सारा सुख मिलता है जिसका वह भूखा था जिसके लिये वह किसी भी हद तक जा सकता था लेकिन यह सब उस परिणति की कीमत थी जिसकी देहरी पर अंततः उसे पहुंचना पड़ा। एक छोटी सी नौकरी से उसके नये जीवन का जो सिलसिला शुरू होता है वह पैसे और प्रॉपर्टी के लिये बुनी गयी साजिश को पार करते हुए उसे एक जिहादी नेटवर्क के साथ जोड़ कर अंततः मौत के गहरे कुएं में धकेल कर ही ख़त्म होता है। हम हर शख्स को नैतिकता के तराजू पर नहीं तौल सकते... कुछ लोगों के लिये इसकी कोई वर्जना नहीं होती उन्हें वह सब ही आकर्षित करता है जो अनैतिक हो अतिवाद हो अपरिमार्जित हो... जो जिंदगी को अपने ही उन्मुक्त अंदाज़ में जीना चाहते हों जहाँ कोई बंदिश न हो... दया शंकर दूबे एक ऐसा ही शख्स था।