Jin Khoja Tin Paiyan Gahre Pani Paith (जिन खोजा तिन पाइयाँ गहरे पानी पैठ)
Hindi


LOOKING TO PLACE A BULK ORDER?CLICK HERE

Piracy-free
Piracy-free
Assured Quality
Assured Quality
Secure Transactions
Secure Transactions
Fast Delivery
Fast Delivery
Sustainably Printed
Sustainably Printed
Delivery Options
Please enter pincode to check delivery time.
*COD & Shipping Charges may apply on certain items.
Review final details at checkout.

About The Book

कुंडलिनी-यात्रा पर ले चलने वाली इस अभूतपूर्व पुस्तक के कुछ विषय बिंदु: * शरीर में छिपी अनंत ऊर्जाओं को जगाने का एक आह्वान * सात चक्रों व सात शरीरों के रहस्यों पर चर्चा * आधुनिक मनुष्य के लिए ध्यान की सक्रिय विधियों का जन्म * तंत्र के गुह्य आयामों से परिचय अनुक्रम साधना शिविर #1: उदघाटन प्रवचन ... यात्रा कुंडलिनी की #2: दूसरा प्रवचन व ध्यान प्रयोग ... बुंद समानी समुंद में #3: तीसरा प्रवचन व ध्यान प्रयोग ... ध्यान है महामृत्यु #4: चौथा प्रवचन ... ध्यान पंथ ऐसो कठिन #5: अंतिम ध्यान प्रयोग ... कुंडलिनी, शक्तिपात व प्रभु प्रसाद #6: समापन प्रवचन ... गहरे पानी प्रश्नोत्तर चर्चाएं #7: पहली प्रश्नोत्तर चर्चा ... कुंडलिनी जागरण व शक्तिपात #8: दूसरी प्रश्नोत्तर चर्चा ... यात्रा: दृश्य से अदृश्य की ओर #9: तीसरी प्रश्नोत्तर चर्चा ... श्वास की कीमिया #10: चौथी प्रश्नोत्तर चर्चा ... आंतरिक रूपांतरण के तथ्य #11: पांचवीं प्रश्नोत्तर चर्चा ... मुक्ति सोपान की सीढ़ियां #12: छठवीं प्रश्नोत्तर चर्चा ... सतत साधना: न कहीं रुकना, न कहीं बंधना #13: सातवीं प्रश्नोत्तर चर्चा ... सात शरीरों से गुजरती कुंडलिनी #14: आठवीं प्रश्नोत्तर चर्चा ... सात शरीर और सात चक्र #15: नौवीं प्रश्नोत्तर चर्चा ... धर्म के असीम रहस्य सागर में #16: दसवीं प्रश्नोत्तर चर्चा ... ओम्‌ साध्य है, साधन नहीं #17: ग्यारहवीं प्रश्नोत्तर चर्चा ... मनस से महाशून्य तक #18: बारहवीं प्रश्नोत्तर चर्चा ... तंत्र के गुह्य आयामों में #19: तेरहवीं प्रश्नोत्तर चर्चा ... अज्ञात, अपरिचित गहराइयों में उद्धरण: जिन खोजा तिन पाइयां, तेहरवां प्रवचन "दावेदार गुरुओं से बचो तो जहां दावा है--कोई कहे कि मैं शक्तिपात करूंगा, मैं ज्ञान दिलवा दूंगा, मैं समाधि में पहुंचा दूंगा, मैं ऐसा करूंगा, मैं वैसा करूंगा--जहां ये दावे हों, वहां सावधान हो जाना। क्योंकि उस जगत का आदमी दावेदार नहीं होता। उस जगत के आदमी से अगर तुम कहोगे भी जाकर कि आपकी वजह से मुझ पर शक्तिपात हो गया, तो वह कहेगा, तुम किसी भूल में पड़ गए; मुझे तो पता ही नहीं, मेरी वजह से कैसे हो सकता है! उस परमात्मा की वजह से ही हुआ होगा। वहां तो तुम धन्यवाद देने जाओगे तो भी स्वीकृति नहीं होगी कि मेरी वजह से हुआ है। वह तो कहेगा, तुम्हारी अपनी ही वजह से हो गया होगा। तुम किस भूल में पड़ गए हो, वह परमात्मा की कृपा से हो गया होगा। मैं कहां हूं! मैं किस कीमत में हूं! मैं कहां आता हूं!… तो जहां तुम्हें दावा दिखे--साधक को--वहीं सम्हल जाना। जहां कोई कहे कि ऐसा मैं कर दूंगा, ऐसा हो जाएगा, वहां वह तुम्हारे लिए तैयार कर रहा है; वह तुम्हारी मांग को जगा रहा है; वह तुम्हारी अपेक्षा को उकसा रहा है; वह तुम्हारी वासना को त्वरित कर रहा है। और जब तुम वासनाग्रस्त हो जाओगे, कहोगे कि दो महाराज! तब वह तुमसे मांगना शुरू कर देगा। बहुत शीघ्र तुम्हें पता चलेगा कि आटा ऊपर था, कांटा भीतर है। इसलिए जहां दावा हो, वहां सम्हलकर कदम रखना, वह खतरनाक जमीन है। जहां कोई गुरु बनने को बैठा हो, उस रास्ते से मत निकलना; क्योंकि वहां उलझ जाने का डर है। इसलिए साधक कैसे बचे? बस वह दावे से बचे तो सबसे बच जाएगा। वह दावे को न खोजे; वह उस आदमी की तलाश न करे जो दे सकता है। नहीं तो झंझट में पड़ेगा। क्योंकि वह आदमी भी तुम्हारी तलाश कर रहा है--जो फंस सकता है। वे सब घूम रहे हैं। वह भी घूम रहा है कि कौन आदमी को चाहिए। तुम मांगना ही मत, तुम दावे को स्वीकार ही मत करना। और तब... पात्र बनो, गुरु मत खोजो तुम्हें जो करना है, वह और बात है। तुम्हें जो तैयारी करनी है, वह तुम्हारे भीतर तुम्हें करनी है। और जिस दिन तुम तैयार होओगे, उस दिन वह घटना घट जाएगी; उस दिन किसी भी माध्यम से घट जाएगी। माध्यम गौण है; खूंटी की तरह है। जिस दिन तुम्हारे पास कोट होगा, क्या तकलीफ पड़ेगी खूंटी खोजने में? कहीं भी टांग दोगे। नहीं भी खूंटी होगी तो दरवाजे पर टांग दोगे। दरवाजा नहीं होगा, झाड़ की शाखा पर टांग दोगे। कोई भी खूंटी का काम कर देगा। असली सवाल कोट का है।"—ओशो
downArrow

Details