कविताएँ मूलतः भाव-प्रधान होती हैं। कवि जब कोई कविता रच रहा होता है तो उसका मन किसी विशेष मनोवेग भाव अथवा रस से भरा होता है। भाव अथवा रस से भरे होने के कारण कविताएँ प्रायः मनोरंजक भी होती हैं। परंतु मनोविनोद या मनोरंजन ही काव्य-कला का उद्देश्य नहीं। काव्य-रचना का अंतिम उद्देश्य है- सत्य की साधना। वास्तव में प्रत्येक कला का यही अंतिम उद्देश्य है एवं इसी उद्देश्य में सबका परम हित है। महर्षि वाल्मीकि महर्षि वेदव्यास से लेकर कालिदास तुलसीदास कबीरदास सूरदास रहीम से लेकर गुरुदेव रवींद्रनाथ ने भी तो काव्य-कला के ही माध्यम से अपनी-अपनी साधना की। इस पुस्तक में आत्म-मंथन तथा जागरण की कवितायें भी इसी उद्देश्य से प्रेरित हैं। परंतु शब्द शैली तथा लेखनी का तर्ज आधुनिक समयानुसार है।
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