जितेन्द्र श्रीवास्तव हिंदी के एक ऐसे जरूरी कवि हैं जिन पर खूब विचार-विमर्श हुआ है। उनकी सर्जनात्मकता पर लिखे गए सैकड़ों आलेख हिंदी-अंग्रेजी की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में बिखरे हुए हैं। उनकी कविताओं पर केंद्रित एक ऐसी आलोचनात्मक पुस्तक की माँग विश्वविद्यालयी अध्येताओं के बीच लम्बे समय से बनी हुई थी जिसमें समग्र मूल्यांकन की कोशिश हो। प्रख्यात आलोचक प्रो अरुण होता ने इस असम्भव से लगने वाले कार्य को संभव कर दिया है। अब यह पुस्तक आपके हाथों में पहुँचने वाली है। आइयेअपने समय के एक महत्वपूर्ण सर्जक और उन पर केंद्रित इस पुस्तक का स्वागत करें।
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