प्रिय पाठकों नमस्कार आप हम सभी इसी समाज का अभिन्न अंग है हम जब से सोचने समझने लायक हुए तभी से मन में कुछ हलचल बनी रही हम हर विषय पर कुछ न कुछ कहना चाहते थे सांस्कृतिक सामाजिक राजनीतिक व आर्थिक परिदृश्य के दोनों रुप में कुछ परिवर्तन हों ऐसा कर गुजरने का मन बना रहता। जीवन के हर सोपान पर उसके मुताबिक उर्जा आती रही। उसी उर्जा को क़लम के माध्यम से उकेरते रहे। व्यक्ति और समाज का मन जीवन भर नहीं समझ सका। जितना सा चाहा लिखा उनमें से कुछ लम्बे समय की जद्दोजहद के बाद संकलन कर आप के समक्ष पेश करने की हिम्मत की। अच्छा बुरा सब है। अच्छे का चयन आप को करना है। - ओम मेहता
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