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About The Book
Description
Author
मिटा के ख़ुद को मयस्सर ख़ुदी का जाम तो है तेरी निगाह में मेरा कोई मक़ाम तो है ख़ुदी को इश्क़ पे कुर्बान नहीं कर सकता मेरा न हो मेरे जज़्बों को एहतराम तो हैहमने जब चाहा बदल कर रख दिया तक़दीर को मौज को साहिल को हर क़तरे को दरिया कर दियाकर रहा बरबादियों के मश्वरे था आसमाँ झुक गया जब हमने इज़हारे तमन्ना कर दियाहै अक्से फितरत ख़ाकी यह गर्दिशे दौरां कभी रहा अंधेरा कभी उजाला है।कर सको तुम न अगर अज़मते इन्सां को क़बूल बन्द काबे को करो तोड़ दो ख़ानोंचमन-चमन है ख़िरामां कि फिर बहार आई सबा है मुश्क बदामां कि फिर बहार आई