श्री दीप तिवारी की 'ज्वाला' का स्पर्श बड़ा शीतल जल है। महाकवि प्रसाद के 'आंसू' की शैली में लिखित पांच सर्गों के इस छोटे से खण्डकाव्य में दो ऐसे प्रेमी-हृदयों की व्यथा कथा है जो एक-दूसरे को हृदय से प्रेम करते हैं पर मिल नहीं पाते। जीवन के पृथक-पृथक मार्गों को नियति से विवश होकर अपनाने पर भी उनका पारस्परिक आकर्षण कम नहीं होता यह देख कर यह लगता है कि भोगवाद के इस जघन्य वातावरण में भी पवित्र प्रेम और निश्छल आत्म-समर्पण की मन्दाकिनी प्रवाहित है। आर्मी से अन्त तक पर्वत शिखर से सागर की ओर दौड़ने वाली तीव्र गतिमती जलधारा-सदृश कवि के हृदय से निसृत होने वाली वेदना 'ज्वाला' के छन्दों में मूर्त होती गई है। एक भी शब्द ऐसा नहीं है जो अनुमति से छलकता हुए न हो। आज ऐसी सरस और प्रवाहपूर्ण रचनाएं विरल हैं।
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