एक गांव एक रास्ता एक मां ... छोटा सा गांव है। जहां आधुनिकता और शिक्षा शायद आना ही नही चाहती। या फिर ये गांव वाले ही बुलाना नही चाहते। एक कच्चा रास्ता है। जहां साल-छह महीनों में शहर से हगाम से या फिर बराड़ से आधुनिकता का एक स्रोत आता तो है। पर वो भी बड़ा सीधा है। परंपरा का प्रेमी जो ठहरा। फिर एक दिन कुछ हुवा अचानक। भूख से तड़पते बच्चों को देख एक मां अपने संघर्ष के लिए तैयार हुई। पेज पिलाकर लकड़ी बेचकर मां ने पल्लू में बांधकर सोनपापड़ी लाई थी। फिर क्या था गांव के दिन ही बदल गये। ये है एक मां की कहानी... फिर क्या हुवा ?? खुदसे पूछो... दिन निकला है दोपहर फिर शाम होगी दिया जला देने से अभी कहां रात होगी।
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