ज्योतिष के तीन हिस्से हैं।<br>एक जिसे हम कहें अनिवार्य एसेंशियल जिसमें रत्ती भर फर्क नहीं होता। वही सर्वाधिक कठिन है उसे जानना। फिर उसके बाहर की परिधि है: नॉन-एसेंशियल जिसमें सब परिवर्तन हो सकते हैं। मगर हम उसी को जानने को उत्सुक होते हैं।और उन दोनों के बीच में एक परिधि है--सेमी-एसेंशियल अर्द्ध अनिवार्य जिसमें जानने से परिवर्तन हो सकते हैं न जानने से कभी परिवर्तन नहीं होंगे। तीन हिस्से कर लें।<br>एसेंशियल जो बिलकुल गहरा है अनिवार्य जिसमें कोई अंतर नहीं हो सकता। उसे जानने के बाद उसके साथ सहयोग करने के सिवाय कोई उपाय नहीं है। धर्मों ने इस अनिवार्य तथ्य की खोज के लिए ही ज्योतिष की ईजाद की उस तरफ गए। उसके बाद दूसरा हिस्सा है: सेमी-एसेंशियल अर्द्ध अनिवार्य। अगर जान लेंगे तो बदल सकते हैं अगर नहीं जानेंगे तो नहीं बदल पाएंगे। अज्ञान रहेगा तो जो होना है वही होगा। ज्ञान होगा तो ऑल्टरनेटिव्स हैं विकल्प हैं बदलाहट हो सकती है।<br>और तीसरा सबसे ऊपर का सरफेस वह है: नॉन-एसेंशियल। उसमें कुछ भी जरूरी नहीं है। सब सांयोगिक है। ओशो
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