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About The Book
Description
Author
दरअसल निरंतर विकसित हो रही हिंदी ग़ज़ल की बुनियादी जमीन भी वही है जो हिंदी कविता की है। प्रगतिशीलता जनपक्षधरता और जनप्रतिरोध एवं बौद्धिक घटाटोप और निरी रूमानियत से प्रायः मुत्तफ़। कुछ लोग हिंदी ग़ज़ल को उर्दू ग़ज़ल की बहन कहते हैं लेकिन मेरे विचार से सहेली कहना ज़्यादा सही होगा। कैलाश मनहर की ये ग़ज़लें भी दोनों भाषाओं के इस रिश्ते और उनकी हिंदुस्तानियत को पहचानती हैं