कालचक्र अर्थात समय का चक्र। समय और जीवन एक दूसरे के पर्याय हैं। समय को ही जीवन कहा गया है। परमात्मा के द्वारा हम सबको दिया गया यह सबसे अमूल्य अनुदान है। जो इसका सदुपयोग करते हैं वे अपने जीवन में आश्चर्य जनक उपलब्धियाँ अर्जित कर लेते हैं और जो इसका दुरुपयोग करते हैं वे पश्चाताप की अग्नि में जलते हुए इस दुनिया से रोते बिलखते विदा होते हैं। समय को अत्यंत बलवान माना गया है। भूत वर्तमान और भविष्य इसी कालचक्र में आघूर्ण करते रहते हैं। वर्तमान एक क्षण के पश्चात जब भूत बनता है उसी क्षण भविष्य वर्तमान का रूप ग्रहण कर लेता है। अनंत काल से गतिशील यह कालचक्र बीते हुए अनंत युगों का साक्षी है। इसने प्रकृति के न जाने कितने ही सृजन और विध्वंस की प्रक्रिया को देखा और समझा है। प्रस्तुत कालचक्र काव्य संग्रह में बीसवीं शताब्दी के अंतिम मध्य दशक में लिखी गईं हमारी रचनाएं संग्रहित हैं। आशा है साहित्य प्रेमी पाठकों को यह कृति पसंद आएगी।
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