रांगेय राघव हिंदी के उन प्रतिभाशाली लेखकों में से हैं जिन्होंने साहित्य के विविध अंगों की समृद्धि के लिए अपनी कुशल लेखनी से अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथों का सृजन किया। उनकी कविता कहानी नाटक उपन्यास आलोचना तथा इतिहास आदि विषयक अनेक उपादेय कृतियां इस कथन की साक्षी हैं। मूलतः दक्षिणात्य होते हुए भी उन्होंने जिस जागरूक प्रतिभा योग्यता तथा कुशलता से हिंदी साहित्य के श्री-वर्द्धन में अपना अविस्मरणीय योगदान दिया वह इतिहास के पन्नों में दर्ज है। कब तक पुकारूं उनकी प्रतिभा और लेखन-क्षमता को अभिषिक्त करने वाली जीवंत औपन्यासिक रचना है। इसमें उन्होंने समाज के सर्वथा उपेक्षित उस वर्ग का चित्रण अत्यंत सरल और रोचक शैली में प्रस्तुत किया है जिसे सभ्य समाज नट या करनट कहकर पुकारता है। कब तक पुकारूं की गणना हिंदी के कालजयी साहित्य में की जाती है।
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