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About The Book
Description
Author
अभी भी मैं कविता से अपना रिश्ता परिभाषित नहीं कर सकता। यह जरूर लगता है कि कविता अपनी समझ साफ करने और संवेदनाओं के प्रेत से निसृत होंने में मेरी मदद करती रही है। कोई भी पीड़ा दायक मोह कोई विदारक घटना या फिर चारों ओर दिन-रात घटती असह्य यातनायें मेरी कविता की भट्ठी से ही गुजरती हैं। जो भस्म होंने से बच जाती हैं वे साझा होती हैं पर राहत सभी देती हैं। ये मेरी पीड़ा का फल रही हैं मेरे प्रयत्नों की उपज नहीं। मेरे पास शब्दों की तंगी बहुत रही है। जो काम आए उनका ऋणी हूँ। भूगोल इतिहास और वर्तमान ने जो कुछ मुझे दिया उसके लिये श्राद्ध-पिण्ड स्वरूप मेरी बहुत थोड़ी-सी कविताएँ ही हैं। मेरी प्रेत-बाधाओं का अन्य कोई मेरे पास उपाय नहीं। मेरा जो रिश्ता अपने आप से है वही कविता से भी।