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About The Book
Description
Author
दिल की ज़रख़ेज़ ज़मीं से उगती कोंपल परवीन शाकिर ने कभी कहा था मैं सच कहूँगी मगर फिर भी हार जाऊँगी लेकिन रेणु नय्यर लगता है कुछ अलग ही इरादे से मैदान में उतरी है | वो सच बोलने की हिम्मत भी करती है और हार मानने को भी तैयार नहीं | उसके लहजे की बेबाक़ी उसकी शायरी में भी जा ब जा दिखाई देती है | उसका ख़ुद पर इतना एतमाद देख कर ख़ुशी भी होती है और डर भी लगता है | ख़ुद पर एतमाद बहुत ज़रूरी है लेकिन मैं मानता हूँ कि हमें बाहर से आने वाली ताज़ा हवा के लिये भी खिड़कियाँ खोल कर रखनी चाहिंये वर्ना हब्स का ख़तरा पैदा हो जाता है | मौजूदा दौर में उग रही शायरों की बेतरतीब खरपतवार में कुछ ख़ुदरौ पौधे ऐसे भी हैं जो अपनी अलग रंगत और ख़ुश्बू से पहचाने जा रहे हैं रेणु भी उन में से एक है | अच्छा शेर तभी होता है जब आप अंदर से भी शायर हों | फ़न्नी ख़ामियां तो इस्लाह और अपनी मेहनत से दूर की जा सकती हैं लेकिन बुनियादी शर्त अपने एहसास का ईमानदाराना इज़हार है | रेणु अपने एहसास के पिघले हुए सोने को ज़ेवर बनाने का हुनर जानती है और उसके इस हुनर में मुसलसल निख़ार आ रहा है | सुबूत के तौर पर उसके कुछ र मुलाहिज़ा फ़रमाइये:- जिसको कहते हैं सुकूँ वो मुख़्तलिफ़ है और जिस आलम में हूँ वो मुख़्तलिफ़ है ***** और नहीं कुछ बीनाई का धोखा है पागल है जो रेत को दरिया कहता है ***** रेत होने तलक का क़िस्सा हूँ बस तेरी याद तक संभलना है सुब्ह होते ही ये मुअय्यन था किस का सूरज कहां पे ढलना है ***** लगता है कुछ दिन ठहरेंगे मंज़र जो दर आये मुझ में कुछ तो बोल मुसव्विर मेरे किस के नक़्श मिलाये मुझ में ***** भूल जाना बड़ा ही आसाँ था मुझको ये भी हुनर नहीं आया ***** दिल की मिट्टी की ज़रख़ेज़ी कुछ ऐसी है कैसी भी हो फ़स्ल उगाई जा सकती है ज़रा मंज़र बदलते ही बदल जायेंगे सब चेहरे बिछड़ते वक़्त का ग़म है अभी तू नम न कर आँखें पहली किताब की इशाअत की ख़ुशी पहली औलाद की पैदाइश जैसी होती है | हम में से बहुत से लोग इस एहसास से गुज़रे हैं | मैं रेणु की इस ख़ुशी में शरीक हूँ और उसके रौशन मुस्तक़बिल के लिये दुआ-गो हूँ | सफ़र लम्बा है और दुश्वार है मंज़िल भी दूर है लेकिन रेणु ने अपने लिये रास्ता बना लिया है और ये कोई मामूली बात नहीं | ख़ुशबीर सिंह शाद.