प्रभाकर श्रोत्रिय (19 दिसंबर 1938-15 सितंबर2016) शीर्षस्थानीय आलोचक प्रभाकर श्रोत्रिय के बारे में आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने लिखा था श्रोत्रिय को समीक्षक की उत्कृष्टकोटिक अंतर्दृष्टि निसर्गतः प्राप्त हैं। और साहित्य की समकालीन पत्रिका शिखर लिखती है समकालीन आलोचना के क्षेत्र में प्रभाकर श्रोत्रिय संभवतः सबसे अधिक विश्वसनीयता के अधिकारी हैं। विख्यात कवि कथाकार वीरेंद्र कुमार जैन ने नवनीत में लिखा था साहित्य में डूबने की उनकी तन्मय संवेदना बड़ी सूक्ष्म और पंखुरी की तरह महीन है। डॉ. श्रोत्रिय को केड़िया पुरस्कार देते हुए कहा गया था अपनी मौलिक अन्वेषणमयी तटस्थ आलोचना दृष्टि के लिए वे अपनी पीढ़ी के अग्रतम आलोचक के रूप में अखिल भारतीय स्तर पर स्थापित हैं। उ. प्र. हिंदी संस्थान ने उन्हें आलोचना के लिए आचार्य रामचंद्र शुक्ल पुरस्कार देते हुए लिखा कि प्रभाकर श्रोत्रिय भारतीय और पाश्चात्य काव्यशास्त्र के उल्लेखनीय समकालीन विज्ञान आलोचकों में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं। अपनी सैद्धांतिक और व्यावहारिक आलोचना-कृतियों के माध्यम से आपने हिंदी आलोचना की भाषा को एक नया संवेग और त्वरा प्रदान की है। आपने आलोचना को ग्राह्य और पठनीय बनाया है। यह कहना सही होगा कि आपकी स्वस्थ दृष्टि ने स्वस्थ भाषा की रचना की है। ... आपने कविता का एक स्वस्थ सौंदर्यशास्त्र रचा है। पुस्तकें आलोचना-सुमनः मनुष्य और स्रष्टा प्रसाद का साहित्य प्रेम तात्त्विक दृष्टि कविता की तीसरी आँख संवाद कालयात्री है कविता रचना एक यातना है जयशंकर प्रसाद की प्रासंगिकता मेघदूतः एक अंतर्यात्रा शमशेर बहादुर सिंह मैं चलूँ कीर्ति-सी आगे-आगे हिंदी-कल आज और कल आदि।
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